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कहाँ तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए न हो कमीज़ तो पाँवों से पेट ढ़क लेंगे ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी, शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए। हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में, हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।